ऑनलाइन होमवर्क
भारत में प्रारंभ से ही बच्चों को स्मार्टफोन के जरिए होमवर्क करने को कहा जा रहा है| क्लासरूम टीचिंग अब नदारद है| ऑनलाइन टीचिंग और होमवर्क ने बच्चों के ऊपर अतिरिक्त दबाब बनाया है| क्लासरूम टीचिंग बच्चों और शिक्षकों के मध्य एक सीधा संवाद था किंतु ऑनलाइन टीचिंग ने बच्चों के साथ साथ माता-पिता को भी उलझा कर रख दिया है|
ऑनलाइन होमवर्क मे छात्र होमवर्क नोट करता है, फिर उसे लिखता है और लिख कर उसकी फोटो खींचकर उसे शिक्षक को भेजना पड़ता है| कहने का मतलब है सीधे संवाद के स्थान पर यह चार गुना कार्य विस्तार हो गया है| इससे बच्चे गहरा दबाव महसूस कर रहे हैं| बच्चों के साथ ही कम शिक्षित माता-पिता और अधिक असमंजस में है|
विकसित देशों में कम आबादी वह लंबे अनुभव के कारण ऑनलाइन टीचिंग अथवा होमवर्क ठीक है किंतु भारत जैसे विकासशील देश में एक झटके में ऑनलाइन टीचिंग से बच्चों का मनोविज्ञान गहरे रूप से प्रभावित हो रहा है|एक और खेल की संभावनाएं गायब है, लॉक डाउन के चलते बच्चो ने केवल कार्टून देखने मे समय बिताया हैंl उनकी मनोस्थिति मे निश्चित रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है|
मेरे पड़ोस मे एक अल्प शिक्षित माता-पिता रहते हैं उनका बच्चा KG क्लास का विद्यार्थी है| मैं देखता हूँ की वह बच्चा शिक्षक की कमी को पूरी शिद्दत के साथ मह्सूस कर रहा है| माता पिता भी बच्चो के हर समय घर पर रहने के कारण असहज महसूस कर रहे है| कोरोना के इस दौर मे मानसिक थकान के कारण बच्चे , शिक्षक और अभिभावक सभी चिंतित हैं| शिक्षकों का वेतन भी आधा रह गया है|
निराशा और अवसाद कई माइनो मे बढ़ा है| स्मार्टफोन के क्रय की खरीद एक नया पारिवारिक व्यय है| 5G टेक्नोलॉजी के आने से यह खर्च और बढ़ेगा| टूटते आर्थिक समीकरण के दौर में यह बदलाव ऑनलाइन टीचिंग का बजट बिगड़ेगा ही| चाहे शिक्षक हो या माता पिता नये दौर की टेक्नोलॉजी से जुड़ना ही पड़ेगा|
एक प्रश्न यह भी उभर रहा है कि इस डिजिटल डिवाइड से समाज में
असमानता तेजी से बढ़ रही है| संपन्न घरों और स्कूलों के बच्चे इस दौर में गरीबों से कहीं आगे निकल जाएंगे| प्रजातंत्र में यह डिजिटल डिवाइड आर्थिक डिवाइड की तरह समाज को दो भागों में बाट देगी| एक चिंता का विषय यह भी है की कुछ स्कूलों ने ऑनलाइन टीचिंग को क्लासरूम टीचिंग की तरह आठ दस घंटे तक फैला कर बच्चों में गहरी थकान को जन्म दिया है| भारत जैसे देश में मनो चिकित्सकों की संख्या नगण्य है| यहाँ बालमनोविज्ञान की समस्याओं को समझने में बहुत समय लगेगा|
निष्कर्ष यह है कि इस दिशा में नीति बनाने वालों, स्कूल प्रशासकों और माता पिता को एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना पड़ेगा| अगर बाल मनोविज्ञान के साथ नए प्रयोग करने भी हैं तो भी बहुत परिपक्व और मनो चिकित्सकों के परामर्श अनुसार कोर्स डिजाइन करने होंगे| अंत में शिक्षा की गुणवत्ता, शिक्षा से संस्कार और राष्ट्रीय अंत राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता के प्रयास भी करने होंगे|
आज की शिक्षा पहले जैसी नहीं रह गई है आज शिक्षा का बाजारीकरण हो गया है जिस कारण कई गरीब परिवार के शिष्य उच्च शिक्षा ग्रहण करने में असमर्थ है।
How to study online and how to teach online both stakeholders do not know. so training to teachers is very much essential.