BHAGVAD GITA: भरतीय चिंतन और जीवन प्रबंधन के तीन रूप हमारे सामने आते है- महाभारत, तुलसीदास जी की राम चरित मानस और भागवत गीता| महाभारत मे जीवन के आदर्शों को व्यक्त किया गया है| तुलसीदास ने रामचरित मानस में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के बहाने व्यक्ति एवं परिवार के आदर्श को बताया है|वही दूसरी तरफ भागवत गीता हर देशकाल और परिस्थिति मे जीवन के प्रबंधन और मनोविज्ञान की व्याख्या करती है|भगवद गीता मोह, माया, हताशा, निराशा, कुंठा के चलते जीवन को कैसे बैलेंस मे रखना चाहिए, यह समझाती है| इसमे कहा गया है –
समत्वं योग उच्यते
भगवत गीता की यही विशेषता है की वह इस लोक मे मनुष्य के सुख-दुख, लाभ-हानि और जय-पराजय मे अपना संतुलन कैसे रखा जाये, यह बताती है| पारलौकिक अर्थ मे भगवद गीता मोहपाश से मुक्ति का रास्ता बताती है|
BHAGVAD GITA: आज के दौर में प्रासंगिकता
पुरे विश्व मे आज का दौर गहरे उथल-पुथल का है|विश्वव्यापी महामारी कोरोना ने पीड़ाओं, चिंताओं और व्यक्ति की टूट-फूट के नये अक्स तैयार किये है|अवसाद के नये अक्षांश और देशांतर बन रहे है| कोरोना ने व्यक्ति के अकेलेपन और सन्नाटे को बढ़ाया ही है|जीने की आस को अकल्पित भय ने ग्रहण लगा दिया है|ऐसी स्थिति मे भगवत गीता की महत्ता और प्रासंगिकता और बढ़ गयी है|
ऐसा नहीं है की भागवत गीता केवल आज के कोरोना दौर मे प्रासंगिक है| आजादी के दौर मे भी वीर क्रांतिकारियों के हाथो मे गीता सदैव रही थी|महान आजादी के दीवानी खुदि राम बोस को जब फांसी दी जाने लगी तो उनके हाथ मे भागवत गीता ही थी| यही हाल अन्य क्रांतिकारिओं और आजादी के सूर वीरो का भी था|
BHAGVAD GITA :भगवद गीता सर्वकालीन ग्रन्थ है
इसमे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए है वे हर दौर के अनमने व्यक्ति को पावर वीटा देने के लिए समर्थ है|अर्जुन कुरुक्षेत्र के रण मे अपने सखे संभंधियो को देखकर युद्ध से पीछे हटना चाहता है| उसे जीवन की थकान आबद्रध कर लेती है, शोक-समवेक उसे विषाद की अतल गहराइयो मे ले जाते है वहा भगवद गीता के उपदेश उसे स्वधर्म की याद दिलाते हुये वुलवर्क का काम करते है|
युक्त आहार विहार और संतुलन भगवद गीता का सार है| व्यक्ति सही आहार विहार और सोच से अपने जीवन को प्रसन्नता की और उन्मुख करता है| भगवद गीता एक व्यवाहरिक मैनुअल होने के साथ ही कर्मयोग का वाचक भी है| चरैवेति चरैवेति इसका मूल सार हैै| भागवत गीता कहती है
कर्म पर तुम्हारा अधिकार है
फल पर नहीं
कर्म करते हुए मनुष्य को सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करनी चाहिए|कर्म ही (Self Actualization) की सी डी है|
भागवत गीता आज के मानव के लिए लाइफ मैनेजमेंट का मूल मनोविज्ञान है|वर्क-लाइफ मैनेजमेंट इसकी धुरी है|पश्चिम के भौतिकवाद और उपभोगतावाद ने जहाँ प्रकृति के लूट पात का मार्ग प्रशस्त किया वही भागवत गीता एक समन्वयकारी व सामासिक संस्कृति पर जोर देती है|व्यक्ति कर्म, चिंतन व स्वाभाव के स्तर पर कैसे अपने लोक धर्म को पूरा करे यह महत्वपूर्ण शिक्षा है|यहाँ कृष्ण लगातार अर्जुन का मोह दूर कर उसे कर्त्तव्य पथ पर वापस लाते है|उसे विद्या और अविद्या, हिंसा और धर्म का व्याकरण समझाते है|तभी अर्जुन युद्ध मे प्रवृत्त होता है|
भागवत गीता एक मैनेजमेंट साइंस है|प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन मे इसे पढ़ना ही नहीं चाहिए बल्कि इसके आदर्शो पर चलना भी चाहिए| तभी व निराशा, अवसाद, थकान, कुंठा और अकर्मण्यता की सुरंग से बाहर आ सकता है|
लेखक – विजय ढौंडियाल
https://digitalakhbaar.com/shri-krishna-an-avtar-full-of-excitement-and-lessons/
वर्तमान समय में मानव जाति को विभिन्न प्रकार की समस्याओं से मुक्ति दिलाने हेतु एक सार्थक एवं कालजई ग्रंथ है श्रीमद् भागवत
Jai shri krishna……
Keep it up sir… Its really nice motivational…..giving positive energy to us…. 🙋🙋🙋🙋