मिक एवलांच जोन में काम कर रहे थे
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डा. मनीष मेहता के अनुसार माणा के पास संबंधित स्थल पर एवलांच आने की घटनाएं पूर्व में भी सामने आती रही हैं। ऐसे जोन में कैंप नहीं बनाना चाहिए।
एवलांच आना सामान्य घटना है
यदि कार्य आवश्यक है तो बर्फबारी के समय एवलांच जोन से दूर हो जाना चाहिए। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में एवलांच आना सामान्य घटना है। जरूरत सिर्फ इस बात की है कि एवलांच जोन में सतर्कता बरती जाए। उत्तराखंड के उच्च क्षेत्रों में इस तरह के जोन बड़ी संख्या में हैं।
खासकर बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे उच्च क्षेत्रों में एवलांच जोन अधिक हैं। इस तरह की घटना को रोका नहीं जा सकता है। सिर्फ निगरानी और सावधानी से जानमाल का नुकसान रोका जा सकता है।
राहत-बचाव कार्य पर केंद्र की नजर
घायलों को निकालने और अधिक बचाव टीमों को भेजने के लिए सड़क खोलने के प्रयास भी चल रहा है। मौके पर मौजूद सेना के डॉक्टरों ने गंभीर रूप से घायलों की महत्वपूर्ण जीवन रक्षक सर्जरी की है। बीआरओ की ओर से पुष्टि की गई है कि 22 मजदूर भागने में सफल रहे और उन्हें बदरीनाथ में ढूंढ लिया गया है। भारतीय सेना जल्द से जल्द फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।
इसलिए आते हैं एवलांच
- उच्च हिमालयी क्षेत्रों में तापमान कम होने से बर्फबारी अधिक होती है। यह बर्फ निरंतर जमा होती रहती है और जब एक जगह पर दबाव अधिक बढ़ जाता है तो ढीली बर्फ खिसकने लगती है। जब बर्फ भारी मात्रा में खिसकती है तो इसे ही एवलांच कहा जाता है।
- कई बार बर्फबारी के बाद जब ताजा बर्फ अधिक मात्रा में जमा होती है तो वह मौसम के हल्का गर्म होने पर भी खिसकने लगती है, क्योंकि ताजा जमा बर्फ जल्द ढीली पड़कर खिसकने लगती है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में कम समय मे अधिक उतार चढ़ाव देखने को मिल रहा है। इस कारण बर्फबारी के बाद उसे ठोस होने का समय नहीं मिल पाता है। अचानक मौसमी बदलाव से एवलांच जल्द ट्रिगर होते हैं।