चुनाव प्रजातंत्र की पहचान है
चुनाव पहचान है और प्रजातंत्र के नाम पर चुनाव के अलग-अलग व्यवस्थाएं पूरी दुनिया में देखने को मिलती हैं। चुनाव प्रजातंत्र की अकेली गारंटी कभी नहीं हो सकता इसके लिए एक खुले जनमत ,स्वतंत्र मीडिया और स्वतंत्र संवैधानिक संस्थाओं की जरूरत है।
चुनाव का माहौल आजकल भारत में सर चढ़कर बोल रहा है। पश्चिम बंगाल तमिलनाडु केरल और पुडुचेरी इस चुनाव की गंगा में गोते लगा रहे हैं। राष्ट्रीय और छोटे बड़े राजनीतिक दल सभी इस जमात में कुश्ती कर रहे हैं देखना है कि इस चुनावी पहलवानी में किस के सर पर ताज सजेगा।
चुनाव की वैतरणी
चुनाव की इस वैतरणी में सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी तारणहार के हवाले मोदी अमित शाह और नड्डा की तैयारी बतौर स्टार प्रचारक हमारे सामने हैं। जबकि कांग्रेस राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के सहारे मैदान में है, वामपंथी पार्टियों का अपना गठबंधन है। देखा यह गया है कि इस चुनावी जंग में स्वतंत्र उम्मीदवारों की संख्या भी निरंतर बढ़ रही है।
चुनावी घोषणा पत्र और नारों की भूमिका
चुनाव के इस महा समर में पश्चिम बंगाल में भाजपा परिवर्तन के नारे के साथ उतरी है जबकि तृणमूल कांग्रेस ममता बनर्जी के नेतृत्त्व में खेला के नारे के साथ है। चुनावी घोषणा पत्र में आमतौर पर सभी पार्टियों ने रोजगार परिवर्तन ,राजनीतिक व्यवस्था और बेहतर प्रशासन का सब्जबाग दिखा रहे हैं। असम में भी भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में एनआरसी को मुद्दा बनाया है जबकि कांग्रेस ने उस पर पहनी हुई प्रतिक्रिया और परिवर्तन के संकेत दिए हैं ।http://BJP manifesto 2021 in West Bengal: CAA on Day 1, Rs 10,000/year for refugee families https://timesofindia.indiatimes.com/elections/assembly-elections/west-bengal/bjps-bengal-vow-caa-on-day-1-rs-10000/year-for-refugee-families/articleshow/81622155.cms
चुनावी चरणों की दास्तान
चुनावी महासमर में इस बार पश्चिम बंगाल में 8 चरणों में चुनाव हैं ।जबकि तमिलनाडु और चेरी में मात्र एक चरण में चुनाव संपन्न करने के भारत चुनाव आयोग के निर्देश हैं । भारत चुनाव आयोग ने इस समय केंद्रीय बलों की तैनाती और चुनाव प्रशासन की कमान अपने हाथ में ले रखी है और पग पग पर सघन निगरानी और देश देश कर रहा है । भारतीय चुनाव आयोग की ऐतिहासिक सम्मत भाव हमेशा से संस्था का विषय रहा है, किंतु पिछले कुछ दिनों मे क्योंकि उसकी भूमिका भी राजनीतिक पार्टियों के कटाक्ष पर देखने को मिली है ।भारतीय चुनाव आयोग के इन 3 महीनों में कड़ी परीक्षा होनी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता और शीलता को बनाए रखेगा और प्रतिष्ठित चुनाव में विशेषकर पश्चिम बंगाल में अपनी न्याय प्रिय था और स्वतंत्र भूमिका से लैस रहेगा ।
चुनावी में बढ़ती हिंसा चिंताजनक
चुनाव में विशेषकर पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच चुनाव हिलसा चिंता का विषय बना हुआ है दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं और आधारभूत कैडरो के बीच निरंतर चुनावी झड़पे और हिंसा हो रही है। इसने पूरे देश और दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है । ममता बनर्जी जहां अपने पश्चिम बंगाल की बेटी होने के नाम पर राजनीतिक अखाड़े में जोर आजमाइश कर रही हैं वहीं भाजपा तृणमूल कांग्रेस के कुशासन ,भ्रष्टाचार को लेकर मुखर है ।स्थानीय कार्यकर्ताओं में बंगाल की बेटी बनाम भाजपा के ख्याल भी मुखर हो रहे हैं ।आजादी के 72 साल के बाद भी चुनाव में ऐसा की यह बढ़ती हुई रफ्तार भविष्य के प्रशासन पर भी प्रभाव डालेगी ,इसमें कोई संदेह नहीं । अंततः चुनाव सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए संतुलन और जनपक्ष धरता के प्रतीक हैं ,इसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए यह जिम्मेदारी महान करने का दायित्व सभी राजनीतिक दलों ,भारतीय चुनाव आयोग और अर्धसैनिक बलों का है कि वह सभी राज्यों में चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न कराएं प्रशासनिक नौकरशाही की भी इसमें जरूरी है ।
चुनाव में पारदर्शिता एक अहम मूल्य
चुनाव से जुड़े इन पांच राज्यों में सर्वाधिक वेदनशी पश्चिम बंगाल है। चुनावी पारदर्शिता आचार संहिता को बनाए रखने के लिए हमें ने मील के पत्थरों की जरूरत है । पूरी दुनिया की नजर इन पांच राज्यों के राहों पर टिकी है माई के शुरू में चुनाव आयोग ने मतगणना की नियत की है । प्रणाम चाहे जो भी हो भारतीय प्रजातंत्र का यह एसिड टेस्ट कामयाब रहे,यही पूरे देश की कामना होनी चाहिए ।चुनाव केवल राजनीतिक पार्टियों के लिए जीत का व्याकरण नहीं होना चाहिए,बल्कि प्रजातंत्र के सपने और संभावनाओं का गणित होना चाहिए ।
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