
International Women’s Day: ‘वुमनिया’ ने देहरादून में छेड़ी सुर ताल, अब देशभर में गूंज रही सुरीली आवाज
मन में दृढ़ इच्छा रखने वाले आगे बढ़ने के लिए किसी विशेष समय व उम्र का इंतजार नहीं करते। जहां और जैसे भी मौका मिलता है अपने कार्य को मन व लगन से करते हुए समाज में अलग पहचान बनाते हैं। देश विदेश में धूम मचाने वाले उत्तराखंड का पहला महिलाओं का ‘वुमनिया बैंड’ की कहानी भी कुछ इसी तरह है।
कई बंधन, ताने रास्ते में आए लेकिन उन्होंने इन बातों को दरकिनार कर संगीत के दुनिया में कदम ही नहीं रखा बल्कि अपना एक अलग बैंड बना कर मिसाल कायम की है। शुरुआती दिनों में परेशानी का सामना करना पड़ा लेकिन आज वुमनिया बैंड की महिलाएं विभिन्न राज्यों में अपनी प्रस्तुति से उत्तराखंड को खास पहचान दिला रही हैं।
इनकी सुरीली आवाज उत्तराखंड के निकल देशभर में गूंज रही हैं। इसमें टीम खासतौर पर महिलाओं को जागरूक करने व दहेज, महिला सशक्तिकरण आदि मुद्दों पर गाने रिलीज किए। यह बैंड आज आर्थिक रूप से कमजोर बालिकाओं को भी मदद कर रहा है। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जानते हैं इस बैंड की महिलाओं का संघर्ष और उपलब्धि।
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव की रहनी वाले स्वाति सिंह ने वर्ष 2016 में आज ही के दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर इस बैंड को शुरू किया। दैनिक जागरण से बातचीत में स्वाति ने बताया कि बचपन से मुझे संगीत का काफी शौक था। मेरी मां म्यूजिक शिक्षक रही हैं तो इस ओर ज्यादा रुझान बढ़ा।
ख्याल आया कि क्यों ना एक ऐसा ग्रुप बनाए जिसमें महिलाएं वादन और गायन कर सके। मेरा सरकारी प्राथमिक स्कूल में शिक्षक में चयन हो गया था। लेकिन, मन संगीत में था तो नौकरी ज्वाइन नहीं की। इसके बाद प्राइवेट नौकरी के सिलसिले में देहरादून पहुंची। यहां संगीत को लेकर वातावरण काफी अच्छा मिला।
ऐसे में वर्ष 2011 में म्यूजिक एकेडमी खोली। फिर एक महिलाओं का बैंड बनाने को लेकर लोगों से संपर्क करना शुरू किया। लोगाें का पूरा समर्थन किया। सबसे पहले महिला शाकुंबरी तैयार हुई तो हम दो सदस्य इसमें शामिल हो गए। शाकुंबरी गिटार बजाती हैं। उनकी बेटी जो एकेडमी में पढ़ रही थी श्रीविद्या ने ड्रम बजाना शुरू किया।
इसके बाद एक और छात्रा दीपिका शामिल हुई। जिसने कीबोर्ड पर अपनी ट्रेनिंग शुरू की। इस तरह हम चार सदस्यों ने अपना बैंड 2016 में आज ही के दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर शुरू कर दिया था। डीएल रोड पर स्टूडियो हैं जाहं पर प्रैक्टिस करने के साथ ही रिकार्डिंग की जाती है। उनका कहना है कि अपने मन का काम करने की ठान लें तो रास्ते खुद बन जाएंगे। मेहनत और संघर्ष है लेकिन मन के काम को करने से जो संतुष्टि मिलती है उसका कोई तोड़ नहीं है।