उठते सवाल
विकास दुबे की मौत ने कानून के राज पर एक नयी बहस और चिंतन को जन्म दिया है| इससे पूर्व तेलंगाना मे चार अपराधियों की पुलिस द्वारा मौत और हाशिमपुरा जैसे मामलो ने कानून के राज पर समय समय पर हमारी स्मृति को झंझोरा है|
हमारे संविधान और समाज का चिरंतन मूल्य है- कानून का साशन| इसकी झलक भारती संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिखार विशेष कर स्वतंत्रता का अधिकार, नीति निर्देशक तत्व और संवेधानिक अधिकारों मे बखूबी मिलती है| न्यायालयो ने भी इस दिशा मे पर्याप्त जोर दिया है| किन्तु मीडिया ने विकास दुबे की मृत्यु पर गंभीर प्रश्न उठाये है और प्रकारान्तर से कानून के साशन पर| सुप्रीम कोर्ट ने पकड़े गए अपराधी और एनकाउंटर पर विस्तृत निर्देश दिए है|
इसमे शक नही की विकास दुबे दुर्दान्त अपराधी था| उस पर हत्या और तमाम धाराओं के अधीन 60 मुकदमे दर्ज थे | राजनीती मे उसकी गहरी पेठ थी| हर सत्ता के दौर मे उसकी टूटी बोलती थी| परन्तु स्थानीय प्रशाशन एवं पुलिस उसे कानून के दरवाज़े तक कभी नही ला पायी| विभिन्न हत्या जैसे मुकदमो मे जमानत मिलने के बाद उसका अपराधिक दुशाहस निरंतर बढ़ता रहा| विगत दिवस यह दुर्दान्त अपराधी पुलिस के हाथो मारा गया|
क्या कारण है कि पुलिस के आठ जवानो की सहादत के बाद उसका जोश जगा| यदि कानून के शासन पर पुलिस पहले से ही अमल करती और उसे जेल की सलाखो के पीछे गिरफ्तार कर रखती तब उसके अपराध कि उसे सजा मिल सकती थी| पुलिस ने उसका नाम खूंखार अपराधियों की श्रेणी मे भी नही रखा| कानून के शासन के प्रति पूरी पुलिस महकमे की उदासीनता को बताता है| उम्मीद की जानी चाहिए की उत्तर प्रदेश पुलिस और अन्य राज्यों की पुलिस को सुप्रीम कोर्ट मे प्रकाश सिंह द्वारा दायर याचिका के परिपेक्ष मे अपनी कार्यप्रणाली को कानून के शासन के प्रति उत्तरदायी बनाना चाहिए|
पुलिस के छोटे कर्मचारियों को नए सिरे से कानून के शासन के प्रति संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है| उन्हें अभीसूचना मे निरंतर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए| उनकी सेवा स्थितियों में भी व्यापक सुधार होना चाहिए ताकि उन मे कार्यबोझ के कारण थकान के चिन्ह ना प्रकट हो| अंततः देश को कानून के हिसाब से चलना है इसमे न्यायपालिका की सबसे गतिशील भूमिका है| कार्यपालिका, नौकरशाही, राजनीतिज्ञों और संवैधानिक संस्थाओं को भी कानून के शासन के प्रति ईमानदार बनना होगा अन्यथा कानून एवं व्यवस्था के फ्रंट पर और समस्याये पैदा होती रहेंगी|
लेखक – विजय कुमार
Great aaaj to aapne satta ke khilaf sateek likha.Kanoon ke rakhwalin ne kanoon hath main lia.
Kabhi ved parakash ka upanyash pera tha verdi wala gunda uski yad aa gayi.