उत्तराखंड में उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, कुमाऊं में पिथौरागढ़, कपकोट, धारचूला, मुनस्यारी भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। इन इलाकों में दस से 25 किलोमीटर गहराई के भूकंप आते रहे हैं। इंडियन प्लेट में हिमालयन थ्रस्ट के जोड़ में गतिविधियां भूकंप की वजह हैं। लेसर हिमालया में सर्वाधिक भूकंप आ रहे हैं।
भूकंप में चट्टान की अपेक्षा मिट्टी वाले स्थानों पर अधिक नुकसान होता है। इस दृष्टि से राज्य के रुद्रपुर, काशीपुर, अल्मोड़ा, देहरादून, पौड़ी बेहद संवेदनशील हैं। 1999 से 2018 के बीच ही 5500 से छह हजार भूकंप रिकार्ड किए गए हैं। छह सौ भूकंप ऐसे हैं, जिनकी तीव्रता 3.5 मैग्नीट्यूड है जबकि अन्य की रेंज एक से छह मैग्नीट्यूड है। शोध के नतीजों पर गहराई से अध्ययन किया जा रहा है।
कुमाऊं विवि के भूगर्भ विज्ञान विभाग में पहले प्रो सीसी पंत व अब प्रो राजीव उपाध्याय के अधीन शोध कर रहे डा संतोष जोशी ने भूकंप की संवेदनशीलता पर विस्तृत अध्ययन किया है। यह शोध पत्र जनल्स आफ अर्थक्विक इंजीनियर्स में प्रकाशित हो चुका है। भूगर्भ विज्ञान की ओर से पृथ्वी मंत्रालय के सहयोग से पिथौरागढ़ के मुनस्यारी, तोली, चमोली के भराणीसैंण, चंपावत के सुयालखर्क, कालखेत, धौलछीना, मासी, देवाल, फरसाली कपकोट, पांगला पिथौरागढ़, कुमईयांचौड़ में भूकंप मात्री यंत्र स्थापित किए गए हैं।
डा जोशी के अनुसार राज्य भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। संवेदनशील क्षेत्र जोन चार व अतिसंवदेनशील जोन पांच में आता है। जोन पांच में रुद्रप्रयाग का अधिकांश भाग, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी जबकि ऊधम सिंह नगर, नैनीताल, चंपावत, हरिद्वार, पौड़ी गढ़वाल, अल्मोड़ा जोन चार में हैं, देहरादून व टिहरी दोनों जोन में आते हैं। जोशी के अनुसार हिमालयी क्षेत्र में इंडो-यूरेशियन प्लेट की टकराहट के चलते जमीन के भीतर से ऊर्जा बाहर निकलती रहती है।
डा जोशी के अनुसार अध्ययन में पता चला है कि 1999 से 2018 के बीच ही 5500 से छह हजार भूकंप रिकार्ड किए गए हैं। छह सौ भूकंप ऐसे हैं, जिनकी तीव्रता 3.5 मैग्नीट्यूड है जबकि अन्य की रेंज एक से छह मैग्नीट्यूड है। शोध के नतीजों पर गहराई से अध्ययन किया जा रहा है। इन इलाकों में दस से 25 किलोमीटर गहराई के भूकंप आते रहे हैं।