कांग्रेस के धुरंधर हरीश रावत इंटरनेट मीडिया पर अपनी चुटीली टिप्पणियों से अक्सर चर्चा बटोरते हैं, मगर इस बार राजनीति के समुद्र के कुछ मगरमच्छों ने उन्हें भयभीत कर दिया। मुख्यमंत्री रह चुके हैं, इस बार फिर संभावना बनती दिख रही, तो भरसक कोशिश की कि हाईकमान उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बना दे। यह तो हुआ नहीं, इसके उलट दिल्ली दरबार के नुमाइंदे मंशा पर ग्रहण लगाते नजर आए। अभी नहीं, तो कभी नहीं, हरदा ने इस मूलमंत्र का जाप किया और खोल दिया मोर्चा। उन्हें दरकिनार करना मुमकिन नहीं, लिहाजा सीधे दिल्ली दरबार से बुलावा आ गया। दिल्ली से कुछ इस अंदाज में दून लौटे, मानों चुनाव जीत लिया। विरोधी गुट के एक कांग्रेसी ने टिप्पणी में देर नहीं की। बोले, चुनाव इनके नेतृत्व में होंगे, यह तो पांच महीने पहले ही हाईकमान ने तय कर दिया था, इस बार ऐसा क्या हुआ, जो फूल कर कुप्पा हो रहे।
कभी प्रदेश के एकमात्र क्षेत्रीय दल के रूप में पहचान बनाने वाला उत्तराखंड क्रांति दल, यानी उक्रांद फिर अपने मुद्दों को लेकर जनता के बीच आया है। अविभाजित उत्तर प्रदेश में उक्रांद का गठन अलग राज्य की अवधारणा के साथ हुआ था, लेकिन जब उत्तराखंड अस्तित्व में आ गया, उक्रांद धीरे-धीरे अपना अस्तित्व गंवा बैठा। पिछले दो दशक के दौरान कई बार विघटन का सामना कर चुके दल ने वर्ष 2002 में पहले विधानसभा चुनाव में चार सीटों पर जीत दर्ज कर ठीकठाक प्रदर्शन किया था। वर्ष 2007 के चुनाव में जीत का आंकड़ा तीन सीट और वर्ष 2012 में महज एक सीट पर सिमट गया। रही-सही कसर पूरी हो गई वर्ष 2017 के चुनाव में, जब उक्रांद के हाथ एक भी सीट नहीं आई। अब उक्रांद ने पिछली गलतियों से सबक लेकर आगे बढ़ने की प्रतिबद्धता जताई है। देखते हैं मतदाता उक्रांद के इस वादे से कितने संतुष्ट होंगे।
कांग्रेस के लिए हरीश रावत ने सुर्खियां बटोरी, तो भाजपा से हरक सिंह रावत ने मोर्चा संभाला। हरक कैबिनेट मंत्री हैं, लेकिन अपने विधानसभा क्षेत्र कोटद्वार में मेडिकल कालेज खोलने के लिए मंत्री की कुर्सी भी दांव पर लगा दी। कैबिनेट बैठक से इस्तीफे का एलान कर वाकआउट कर गए। किसी को माजरा समझ नहीं आया, लेकिन बात मीडिया तक पहुंच चुकी थी, तो दून से दिल्ली सब एक्टिव हुए। भाजपा चुनावी बेला में ऐसा कोई संदेश बाहर देना नहीं चाहती थी, जिससे पार्टी असहज हो। दिक्कत यह कि हरक इस्तीफे का शिगूफा छोड़ भूमिगत हो गए। पूरे 24 घंटे भाजपा की सांसें अटकी रही कि पता नहीं हरक का अगला कदम क्या होगा। कुछ विघ्नसंतोषियों ने तो यहां तक उड़ा दी कि हरक बड़े भाई हरीश रावत के गले मिलने को बेकरार हैं। खैर, ऐसा कुछ हुआ नहीं, मुख्यमंत्री धामी के साथ डिनर कर हरक खिलखिलाते घर लौट गए।