श्री ज्वालेश्वर महादेव मंदिर मैं शिव पुराण का आयोजन

जनपद पौड़ी के अंतर्गत पट्टी जैंतोलस्यूं मैं स्थित ग्राम दूणी एवं पिपखोला गावं के ज्वालेश्वर महादेव मंदिर मैं 9 जून 2024 से 20 जून 2024 तक महा शिवपुराण का आयोजन किया जा रहा है. जिसमे स्थानीय लोगो के साथ बाहर से भी काफी लोगों के शामिल होने का अनुमान है.

श्री ज्वालेश्वर महादेव मंदिर के रोचक तथ्य जिसकी जानकारी शायद बहुत लोगो को नही होगी-
श्री ज्वालेश्वर महादेव एक आप लिंग है, आप लिंग मतलब जो भूमि से स्वतः निकला हो,और जिसका कोई अंत नही कितना भी खोदो लिंग का अंत नही मिलेगा, ज्वालेश्वर मंदिर की कुछ विशेषताएं है जो हमारे गावं के बुजर्गों द्वारा बताई गयी हैं.

कहा जाता है कि श्री ज्वालेश्वर मंदिर के लिंग की उत्पति सिध्पीठ मां ज्वाल्पा देवी के मंदिर के सामने से हुई है इसलिए उनका नाम ज्वालेश्वर पड़ा. बताया जाता है कि पहले यहाँ पर मंदिर नहीं था, दूणी गावं के स्व० बैजराम डंडरियाल ने अपनी पत्नी स्व० सीता देवी की पुण्य स्मृति में 1962 में इस मंदिर का जीर्णोद्वार किया था.

श्री ज्वालेश्वर महादेव की खास विशेषता ये है कि वो यूँ तो सच्चे भक्त की हर मनोकामना पूर्ण करते है सबसे जल्दी मानने वाले देवताओ में शिव ही है इसीलिए उनको भोला बाबा भी कहा गया है जो बहुत भोले है और तुरंत खुश हो जाते है, परंतु ज्वालेश्वर महादेव में विशेष रूप है महिलाओं द्वारा पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए यहाँ मन्नत मांगी जाती है, जो आज तक सबकी पूरी हुई।

वैसे ज्वालेशर महादेव के बारें मैं बहुत से किस्से गावं के बुजर्गो द्वारा बताये गए हैं उनमे से एक का विवरण बताता हूं.
चमाली गावं के एक बुजुर्ग ज्वालेशर महादेव के बड़े भक्त थे, वे प्रतिदिन सुबह अपने गावं से आकर महादेव मैं पानी चढ़ाते थे, और ज्वालेशर महादेव के बारें मैं ये कहा जाता है उनको जो दूणी गावं का पुराना स्रोत (पानी की दिग्गी) है उसी का जल चढ़ाया जाता है. एक बार उन भक्त के मन विचार आया कि पानी तो हर जगह का एक जैसा होता है, फिर उसी का स्रोत का चढ़ाऊँ. वो अपने घर से गागर भरके कंधे पर ले जा रहे थे तो मंदिर से कुछ दूर पहले थोड़ी से चढ़ाई आती है,चढ़ाई पर उनको अचानक से ठोकर लगी और वो गिर पड़े और कंधे पर रखी पानी की गागर लुढ़क कर नीचे गिर गई और सारा पानी गिर गया.

फिर अगले दो तीन दिन ऐसा ही होता रहा, उनको समझ ही नहीं आ रहा था कि ऐसे कैसे ठोकर लग रही है जबकि वहां पर ठोकर लगने जैसा न रास्ता है पत्थर वगेरा है. फिर उन्होंने दूणी गावं के किसी बुजुर्ग से इस बारें मैं चर्चा की. तब उन्हें बताया कि महादेव और कहीं का जल ग्रहण नहीं करते हैं. तुम जहाँ से पहले जल लाते थे उसी स्रोत का जल लाओ. फिर उन्होंने उसी स्रोत से जल लाकर भोलेनाथ को चढ़ाया और साथ मैं क्षमा भी माँगी.

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