प्रदेश में जैसे-जैसे मतगणना की तिथि समीप आ रही है, वैसे ही राजनीतिक दलों की बेचैनी बढ़ने लगी है। मतदान के रुझान और मतदाताओं की चुप्पी को देखते हुए किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने का अंदेशा भी जताया जा रहा है। ऐसे में चुनाव जीतने की संभावना वाले दलों और निर्दलीयों को अपने पाले में खींचने की रणनीति अंदरखाने बनने लग गई है। कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी इसी तरह के संकेत दिए है ।
प्रदेश में बीती 14 फरवरी को मतदान हो चुका है। मतदान के बाद से ही सत्ता की दावेदारी कर रहे राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। कांग्रेस में अधिक उत्साह देखा जा रहा है। इसकी वजह उत्तराखंड में अब तक किसी एक दल की लगातार दूसरी बार सरकार नहीं बनने की परंपरा है। साथ ही पार्टी को भरोसा है कि सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी फैक्टर का लाभ उसी की झोली में गिरने जा रहा है। यही वजह है कि कांग्रेस के तमाम नेता ये दावा कर रहे हैं कि उन्हें स्पष्ट बहुमत मिलने जा रहा है और 10 मार्च के बाद सरकार बनाने जा रहे हैं।
राजनीतिक दल इन दावों के बीच मतदाताओं की चुप्पी से सहमे हुए भी हैं। अंदेशा यह जताया जा रहा है कि किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत शायद ही मिल पाए। ऐसी स्थिति में सबसे बड़े दल के सामने जरूरी बहुमत जुटाने के लिए जीतने वाले अन्य दलों के प्रत्याशियों और निर्दलीयों का समर्थन प्राप्त करने की चुनौती होगी। इस अंदेशे को भांपकर राजनीतिक दलों ने अभी से कवायद तेज कर दी है। प्रदेश में कांग्रेस के चुनाव अभियान की बागडोर संभालने वाले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत संकेत दे चुके हैं कि कांग्रेस लोकतांत्रिक ताकतों का सहयोग लेने में पीछे नहीं हटने वाली। यही नहीं मीडिया से बातचीत में वह बहुमत मिलने की स्थिति में भी अन्य लोकतांत्रिक ताकतों को साथ लेकर चलने की सहिष्णुता का विश्वास भी जता रहे हैं। उनके इस वक्तव्य को कांग्रेस की रणनीति के तौर पर देखा गया है। कांग्रेस आवश्यकता पडऩे पर अन्य दलों का साथ लेकर सरकार बनाने में देर नहीं करेगी।