कोरोना वायरस का नया वैरिएंट ओमिक्रोन देश-दुनिया के साथ ही उत्तराखंड के लिए भी चिंता बना हुआ है। राज्य में अब तक ओमिक्रोन के आठ मामले आ चुके हैं। चिंता इस बात की है कि यह वैरिएंट तीन गुना तेजी से फैलता है। पर इस बीच कोरोना वायरस का डेल्टा वैरिएंट अभी भी चुनौती बना हुआ है। दून मेडिकल कालेज की वायरोलाजी लैब में अभी तक हुई जीनोम सिक्वेंसिंग में 98 प्रतिशत सैंपल में डेल्टा वैरिएंट का कोई उपवंश पाया गया है। एवाई.4, एवाई.12 सहित अन्य उपवंश ज्यादा घातक नहीं हैं।
कोरोना वायरस लगातार अपने रूप बदल रहा है। चीन के वुहान से अब तक कई बड़े बदलाव हो चुके हैं। जिन्हें अलग अलग वैरिएंट के रूप में पहचाना गया है। इसके अलावा विभिन्न वैरिएंट के कई उपवंश भी हैं। जिनकी पहचान के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग की जाती है। राज्य में अभी सिर्फ दून मेडिकल कालेज में ही जीनोम सिक्वेंसिंग की जा रही है। अब यहां 483 सैंपल आए हैं, जिनमें सात सैंपल में ओमिक्रोन वैरिएंट (एक अन्य सैंपल की रिपोर्ट दिल्ली से प्राप्त हुई) मिला है। जबकि 316 सैंपल में डेल्टा के अलग-अलग उपवंश मिले हैं। यानी अभी भी ज्यादा मामले डेल्टा के ही आ रहे हैं।एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम के राज्य नोडल अधिकारी डा. पंकज सिंह का कहना है कि राज्य में डेल्टा के जो उपवंश मिले हैं, वह ज्यादा घातक नहीं हैं। वहीं, कोविड टीकाकरण से भी प्रतिरक्षा प्रणाली भी बेहतर हुई है। ध्यान देने वाली बात ये है कित जीनोम सिक्वेंसिंग की प्रक्रिया में छह से सात दिन का समय लगता है। यानी अभी जो मामले बढ़े हैं, उसकी वास्तविक स्थिति आगे की रिपोर्ट में स्पष्ट होगी।
दून मेडिकल कालेज के प्राचार्य डा. आशुतोष सयाना ने बताया कि जनता कोविड नियमों को लेकर बेपरवाह हो गई है। शारीरिक दूरी का पालन नहीं किया जा रहा, वहीं बड़ी संख्या में लोग बिना मास्क दिख रहे हैं। भले ही आपको वैक्सीन लगी है, पर यह जान लीजिए कि इस तरह की लापरवाही से आप रिस्क जोन में आ जाएंगे। जिला अस्पताल के वरिष्ठ फिजीशियन डा. एनएस बिष्ट ने कहा, गर्मियों के उच्च तापमान, आदर्ता और पराबैंगनी किरणों के आधिक्य के चलते वायरस अस्थिर होता है। जबकि सर्दियों का कम तापमान, कम आदर्ता और कम पराबैंगनी विकिरण वायरस को स्थायित्व प्रदान करता है। शुष्कता की वजह से बलगम की बूंदें छोटे वातकणों में टूट जाती हैं और हवा में ज्यादा देर तक तैर सकती हैं। ऐसे में बचाव रखें।