कांग्रेस में दावेदारों के चेहरे घोषित करने का सिलसिला अंतिम चरण में पहुंच चुका है। उम्मीदवारों के चयन के तुरंत बाद बगावत और असंतोष के सुर न निकलें, इसलिए तीन सह प्रभारियों को खास जिम्मा मिला है। 70 सीटों वाले उत्तराखंड को तीन जोन में बांट इन्हें दावेदारों, स्थानीय संगठन, फ्रंटल संगठन और गैर राजनैतिक मगर क्षेत्र में पकड़ रखने वाले लोगों से राय-मशविरा करने को कहा गया है। ताकि उस नाम का चयन हो सके। जिस पर विवाद की संभावना हो। या फिर होने पर बहुत ज्यादा असर न पड़े। अब देखना यह है कि पार्टी की रणनीति कितनी कामयाब होगी।
2017 के चुनाव में कांग्रेस को कई सीटों पर बगावत का खामियाजा भुगतना पड़ा था। टिकट न मिलने पर निर्दलीय मैदान में उतरे नेताओं ने पार्टी उम्मीदवार को झटका दिया था। सबसे बड़ा उलटफेर भीमताल सीट पर हुआ था। जहां टिकट न मिलने पर निर्दलीय मैदान में उतरे राम सिंह कैड़ा विधायक बने और अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं। कुमाऊं की 29 सीटों पर अभी तक 200 के करीब लोग टिकट के लिए आवेदन कर चुके हैं। जबकि पूरे उत्तराखंड से 478 लोगों ने दावेदारी की है। यानी 70 को टिकट देने के साथ 408 को मनाना भी पड़ेगा। वरना खेल बिगडऩे में वक्त नहीं लगेगा।
इसलिए पार्टी ने तीनों सह प्रभारियों को जिम्मा सौंपा है कि बगावत के साथ भीतरघात का बीज भी पनपने से रोका जाए। सह प्रभारी दीपिका पांडेय सिंह को तराई बेल्ट यानी हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर, राजेश धर्माणी को गढ़वाल और कुलदीप इंदौरा को कुमाऊं के पांच जिलों की जिम्मेदारी मिली है। इंदौर ने हाल में अल्मोड़ा जनपद की कई सीटों पर जाकर संगठन व अन्य लोगों से बात भी की थी। तीनों सह प्रभारी जल्द कांग्रेस हाईकमान और स्क्रीनिंग कमेटी को यह रिपोर्ट सौंप देंगे।हर सीट पर सबसे बेहतर उम्मीदवार को मैदान में उतारा जाएगा। जिसकी संगठन से लेकर आम लोगों में बेहतर छवि हो। मुख्य संगठन के अलावा फ्रंटल संगठन से बात कर सहमति का प्रयास किया जा रहा है। इसमें क्षेत्र के प्रभावी और गैर राजनीतिक लोगों के फीडबैक को भी अहमियत दी जा रही है।