पांच साल में हर साल तीन सत्र तो हुए, लेकिन सदन कुल मिलाकर 70 दिन ही चला

उत्तराखंड यौवन की दहलीज पर कदम रख चुका है, लेकिन अभी तक के इक्कीस सालों के सफर में माननीयों को लोकतंत्र के मंदिर में मत्था टेकने के कम ही अवसर मिले। सीधे तौर पर कहें तो उत्तराखंड में सदन की कार्यवाही के दिवस उम्मीदों से बहुत कम रहते आए हैं। आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं। हालिया पांच साल में हर साल तीन सत्र तो हुए, लेकिन सदन कुल मिलाकर 70 दिन ही चला। इससे पहले के 15 सालों का आंकड़ा भी कमोबेश इसी के आसपास है। आदर्श स्थिति यह कि उत्तराखंड जैसे छोटे राज्यों में साल में कम से कम 60 दिन सदन चलना चाहिए। बड़े राज्यों के लिए यह मानक 100 दिन है।विधायी कामकाज के दृष्टिकोण से देखें तो गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने समेत कई महत्वपूर्ण निर्णयों की गवाह चौथी विधानसभा बनी। पांच साल में सदन में 132 विधेयक पारित हुए, जो अधिनियम बने। इनमें चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम भी शामिल है, जो इसी विधानसभा में पारित हुआ और फिर निरस्त भी। चौथी विधानसभा के कार्यकाल में कई नई पहल भी हुईं। सदन में आजादी के अमृत महोत्सव पर चर्चा कराने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बना।

मार्च 2017 में चौथी विधानसभा का गठन होने के बाद दिसंबर 2021 तक प्रतिवर्ष विधानसभा के तीन सत्र हुए। इस दौरान हुए सभी सत्रों में सदन की कार्यवाही 328.36 घंटे चली, जबकि 10.19 घंटे का व्यवधान आया। चौथी विधानसभा के कुल 15 सत्रों में चार ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में आयोजित किए गए, जबकि शेष देहरादून में। वर्ष 2018 ऐसा रहा, जब गैरसैंण में एक भी सत्र नहीं हुआ।विपक्ष संख्या बल में भले ही कम रहा, लेकिन जनमुद्दों पर वह निरंतर मुखर रहा। पांच साल के कार्यकाल में विधायकों द्वारा सत्र के लिए प्रश्न लगाने को लेकर कंजूसी का आलम दिखा। पहली बार कोरोना की छाया में सदन चला और इसी के अनुरूप व्यवस्था हुई। दुखद पहलू यह रहा कि चौथी विधानसभा ने अपने छह विधायकों को भी खोया। शायद नियति को यही मंजूर था। अब जबकि विधानसभा के चुनाव का बिगुल बज चुका है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि पांचवी विधानसभा ससंदीय परंपराओं के मद्देनजर सदन चलने के मामले में आदर्श स्थिति तक पहुंचने का प्रयास करेगी। साथ ही सत्ता पक्ष और विपक्ष राज्य एवं राज्यवासियों के हित से जुड़े विषयों पर गंभीर रुख अपनाएंगे।

उत्तराखंड की चौथी विधानसभा भले ही 70 दिन चली हो, लेकिन यह ऐतिहासिक निर्णयों की गवाह भी बनी। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है उत्तराखंड की जनभावनाओं का केंद्र रहे गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया। यद्यपि, राज्य गठन के बाद से सभी राजनीतिक दल गैरसैंण को राजधानी का दर्जा देने की बात तो करते रहे, लेकिन किसी ने इस पर अपनी स्पष्ट सोच प्रदर्शित नहीं की। लंबी प्रतीक्षा के बाद मार्च 2020 को गैरसैंण में भराड़ीसैंण स्थित विधानसभा भवन में आयोजित बजट सत्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत बजट पेश करने के बाद सदन में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की। इसके बाद सरकार ने इस संबंध में अधिसूचना भी जारी की और गैरसैंण आखिरकार ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गई। इसके साथ ही गैरसैंण राजधानी क्षेत्र के विकास का खाका भी खींचा गया। ये बात अलग है कि इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।दिसंबर 2020 के आखिर से चर्चा के केंद्र में रहे चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम से संबंधित विधेयक भी इसी विधानसभा में पारित हुआ। यद्यपि, बाद में इसी सरकार ने इस अधिनियम को निरस्त कराने का विधेयक भी पारित कराया।

पिछले वर्ष मार्च में गैरसैंण में हुए विधानसभा सत्र के दौरान गैरसैंण कमिश्नरी की घोषणा सदन में की गई थी। तब इस कमिश्नरी में शामिल जिलों को लेकर विरोध के सुर उठने लगे। सरकार में हुए नेतृत्व परिवर्तन के बाद यह घोषणा वापस ले ली गई थी।सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच लगभग सभी सत्रों में जोरआजमाइश भी खूब चली। सदन में मुख्य विपक्ष कांग्रेस की संख्या भले ही 11 के बीच सिमटी रही, लेकिन महंगाई, बेरोजगारी, पलायन, स्वास्थ्य, ढांचागत विकास, कोरोना संक्रमण, देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम जैसे विषयों पर उसने सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस दौरान विपक्ष की ओर से उठाए गए मुद्दों पर उसकी और सत्तापक्ष के मध्य तीखी बहस का गवाह भी यह विधानसभा बनी।

चौथी विधानसभा के दौरान विभिन्न विषयों पर गंभीर बहस भी सदन में हुई। आजादी के अमृत महोत्सव पर सदन में चर्चा कराने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बना तो सतत विकास लक्ष्य पर चर्चा कराने वाला देश का दूसरा राज्य। इन दोनों विषयों पर हुई चर्चा में सत्ता पक्ष और विपक्ष ने न सिर्फ खुलकर अपनी बात रखी, बल्कि राज्य के परिप्रेक्ष्य में कई विषयों पर अपने सुझाव दिए।चौथी विधानसभा इस बात के लिए भी याद रखी जाएगी कि सदन ने तीन नेता सदन देखे तो दो नेता प्रतिपक्ष। विधानसभा ने तीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत व पुष्कर सिंह धामी को देखा। यद्यपि, तीरथ ऐसे मुख्यमंत्री रहे, जिनके छोटे से कार्यकाल में सत्र नहीं हुआ। पांच साल में दो नेता प्रतिपक्ष भी दिखे। नेता प्रतिपक्ष डा इंदिरा हृदयेश के निधन के कारण कांग्रेस ने प्रीतम सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाया।

विधानसभा सत्रों के दौरान अपने क्षेत्र और जनता के हित से जुड़े विषयों को लेकर प्रश्न पूछने के मामले में विधायक कंजूसी करते हैं। चौथी विधानसभा में भी यह दृष्टिगोचर हुआ। यद्यपि, पांच साल में विधायकों की ओर से 10002 प्रश्न लगाए। इस दृष्टि से देखें तो 70 सदस्यीय विधानसभा में पांच वर्ष में एक विधायक के हिस्से में औसतन 142 प्रश्न आ रहे हैं। इसी तरह प्रतिवर्ष का औसत निकालें तो एक विधायक के हिस्से में 28 प्रश्न आ रहे हैं। इसमें प्रतिवर्ष के तीन सत्र लें तो प्रति विधायक औसतन नौ प्रश्न ही उनके खाते में आ रहे। उम्मीद की जानी चाहिए कि पांचवीं विधानसभा में विधायक ज्यादा से ज्यादा प्रश्न लगाकर कीर्तिमान गढ़ेंगे।

चौथी विधानसभा के साथ एक कड़वा अनुभव भी जुड़ा। पांच वर्ष के भीतर छह विधायक हमेशा के लिए साथ छोड़कर चले गए। इनमें पांच विधायक भाजपा के और एक कांग्रेस विधायक शामिल हैं। विधानसभा के गठन के बाद सालभर के भीतर थराली से भाजपा विधायक मगनलाल शाह का निधन हो गया। वर्ष 2019 में पिथौरागढ़ से विधायक एवं सरकार में कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत के निधन से भाजपा के साथ ही राज्य को बड़ा झटका लगा। वर्ष 2020 में सल्ट से भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना का निधन हुआ। वर्ष 2021 में गंगोत्री से भाजपा विधायक गोपाल रावत, हल्द्वानी से विधायक व नेता प्रतिपक्ष डा इंदिरा हृदयेश और फिर देहरादून कैंट से विधायक एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हरबंस कपूर हमेशा के लिए विदा हो गए।

चौथी विधानसभा के दौरान हुए सत्रों में प्रश्नों के उत्तरित होने का रिकार्ड भी बना। सभी 15 सत्रों के दौरान 27 अवसर ऐसे आए, जब प्रश्नकाल के लिए निर्धारित 1.20 घंटे की अवधि में सभी प्रश्न उत्तरित हुए।परंपरानुसार प्रत्येक विधानसभा में बेहतर प्रदर्शन करने वाले एक विधायक को सर्वश्रेष्ठ विधायक चुना जाता है। चौथी विधानसभा में ऐसा नहीं हो पाया। यद्यपि, वर्ष 2019 के आखिर में इसके लिए समिति के गठन की कसरत हुई, लेकिन 2020 में कोरोना संकट की दस्तक के बाद यह कार्यरूप में परिणत नहीं हो पाई। परिणामस्वरूप सर्वश्रेष्ठ विधायक का चयन नहीं हो पाया।

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