स्कूलों को जरूरी संसाधनों से लैस करने के बजाय ऐतिहासिक जिले के 207 राजकीय व प्राथमिक स्कूलों को बंद कर दिया गया

पृथक उत्तराखंड राज्य गठन के 21 सालों बाद भी प्राथमिक स्तर की शिक्षा में कोई विशेष सुधार नहीं आ पाया है। हालत यह है कि स्कूलों को जरूरी संसाधनों से लैस करने के बजाय ऐतिहासिक जिले के 207 राजकीय व प्राथमिक स्कूलों को बंद कर दिया गया। यह स्कूल अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं। जबकि ग्रामीण अंचलों में गरीब अभिभावकों के पाल्यों के लिए यह स्कूल शिक्षार्जन का माध्यम बने हुए थे। इन्हीं विद्यालयों में पढ़कर वर्तमान में पूर्व छात्र विभिन्न विभागों में सेवाएं दे रहे हैं।एक ओर राज्य में आती-जाती सरकारें शिक्षा का उजियारा कोने-कोने में फैलाने की बात करती है। वहीं जिले के विभिन्न विकास खंडों के 207 स्कूलों को वहां संसाधन बढ़ाने के बजाय उन्हें बंद कर दिया गया। अभिभावकों का कहना है कि इन विद्यालयों में घटते संसाधनों के चलते ही छात्र संख्या में गिरावट आई। यदि समय पर विभाग व शासन इन विद्यालयों में सभी जरूरी संसाधन बढ़ाने का प्रयास करता तो विद्यालयों में छात्र संख्या नहीं घटती। एक दौर था जब इन्हीं प्राथमिक स्कूलों में शिक्षार्जन कर आज अनेक पूर्व छात्र विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। राज्य गठन के दौरान जिले में 1470 स्कूल थे, जो अब घटकर 1263 रह गए हैं।

अभिभावकों चंदन रावत, मोहन जोशी, ख्याली दत्त तथा महेश चंद्र का कहना है कि राजकीय बेसिक स्कूलों में पढ़ाई के लिए सभी बेहतर संसाधन मुहैया कराने के प्रयास विभाग व शासन को करने चाहिए। ताकि इन विद्यालयों में छात्र संख्या लगातार बढ़ती रहे। जिससे घटती छात्र संख्या के कारण विद्यालय बंद न होने पाएं। इस दिशा में शासन को गंभीरतापूर्वक कारगर उपाय करने चाहिए। शिक्षक संगठनों ने भी प्राथमिक स्कूलों में हर कक्षा के लिए एक शिक्षक की तैनानी किए जाने पर जोर दिया है।डीईओ हरीश रौतेला का कहना है कि प्राथमिक  शिक्षा के उन्नयन के लिए शासन व विभाग गंभीर है। जिन स्कूलों की छात्र संंख्या शून्य पहुंच गई थी, वही विद्यालय बंद हुए हैं। छात्र-छात्राओं के हितों के लिए शासन की ओर से वर्षों पूर्व से अनेक कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन स्कूलों में शैक्षिक गुणवत्ता संवर्धन के लिए भी व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं।

 

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