रायपुर विधानसभा सीट के कांग्रेस प्रत्याशी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए हरसंभव प्रयास करते दिख रहे

रायपुर विधानसभा सीट के समीकरण यूं तो भाजपा-कांग्रेस के बीच ही सिमटते दिख रहे हैं, मगर इस दफा परिणाम को लेकर स्पष्ट राय कायम करना आसान नहीं है। बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी उमेश शर्मा काऊ को एकतरफा जीत हासिल हुई थी। उनकी जीत का अंतर ही 36 हजार वोट से अधिक था। क्या इस दफा भी जीत का तराजू इसी तरह एकतरफा रह सकता है? यह सवाल हर एक मतदाता के दिलो-दिमाग में कौंध तो रहा है, लेकिन समीकरण बदलने से इसका स्पष्ट जवाब मिलता नहीं दिख रहा।

पिछले चुनाव तक इस सीट पर आम आदमी पार्टी (आप) ने उपस्थिति दर्ज नहीं कराई थी। अब आप ने न सिर्फ यहां एंट्री मारी है, बल्कि वोट में सेंधमारी के लिए हाथ-पांव भी मारे जा रहे हैं। इसके अलावा अबकी बार उक्रांद प्रत्याशी भी दम लगाते दिख रहे हैं। पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी प्रभुलाल बहुगुणा को पार्टी ने आखिरी समय पर मैदान में उतारा था। इस समय भी हालात कुछ ऐसे ही थे, मगर कांग्रेस प्रत्याशी हीरा सिंह बिष्ट टिकट फाइनल होने से पहले ही चुनावी मैदान में पसीना बहाने लगे थे। कांग्रेस प्रत्याशी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए हरसंभव प्रयास करते दिख रहे हैं।

भाजपा प्रत्याशी के एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को भुनाने के लिए भी वह खूब मेहनत कर रहे हैं। दूसरी तरफ, आप और उक्रांद प्रत्याशी भी मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के जतन कर रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी के गढ़ माने जाने वाले रिस्पना नगर, दीपनगर, राजीव नगर, नेहरू कालोनी क्षेत्र में अन्य प्रत्याशी भी धमक दिखा रहे हैं। इसी तरह कांग्रेस प्रत्याशी का गढ़ माने जाने वाले अधोईवाला, सहस्रधारा रोड जैसे क्षेत्रों में भी घुसपैठ की जा रही है। मलिन बस्ती के वोट बैंक पर भी अब कोई प्रत्याशी एकतरफा बढ़त का दावा करने की स्थिति में नहीं दिख रहा।वर्तमान में रायपुर सीट पर स्थिति यह है कि वोटों का ध्रुवीकरण तेजी से हो रहा है। जीत का सेहरा किसके सिर सजेगा, यह तो वक्त ही बताएगा। इतना जरूर है कि फिलहाल किसी भी प्रत्याशी के लिए जीत तक पहुंचना इतना आसान नहीं दिख रहा।

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