ब्रिटिशकाल में गंभीर बीमारियों के उपचार के लिए प्रसिद्ध रैमजे अस्पताल में अब सुविधाएं नहीं बढ़ी

कोरोना महामारी की वजह से बेशक जिला मुख्यालय के बीडी पाण्डे जिला अस्पताल की दशा सुधरी, चिकित्सकों की तैनाती हुई, अन्य सुविधाएं भी बढ़ी, मगर गंभीर बीमारों को अभी भी उपचार के लिए हल्द्वानी समेत अन्य शहरों में जाना पड़ रहा है। ब्रिटिशकाल में गंभीर बीमारियों के उपचार के लिए प्रसिद्ध रैमजे अस्पताल में अब सुविधाएं तो नहीं बढ़ी, लेकिन मुख्य चिकित्सा अधिकारी का दफ्तर जरूर स्थापित हो गया। चुनावी प्रचार के शोरगुल में शहर की स्वास्थ्य सुविधाओं का मुद्दा दब सा गया है।

जिला मुख्यालय के बीडी पाण्डे अस्पताल में शहर समेत समीपवर्ती ग्रामीण इलाकों तथा रानीखेत, भतरौंजखान तक के मरीज उपचार को पहुंचते हैं। यहां स्वास्थ्य सुविधा के लिए बीडी पाण्डे अस्पताल के अलावा रैमजे अस्पताल, आयर्वुेदिक अस्पताल भी शामिल हैं। इसके अलावा चंद निजी क्लीनिक हैं। हाई कोर्ट, राजभवन, कमिश्नरी होने के बाद भी यहां बीडी पाण्डे अस्पताल में अत्याधुनिक सुविधाओं का अभाव है। कोविड काल में आइसीयू लग गया है। कान के मरीजों के लिए आडियो मैट्री रूम बनाया गया है। कार्डियक एंबुलेंस भी आ गई है। प्राइवेट वार्डों की दशा भी सुधरी है।

दंत चिकित्सा विभाग में नई मशीनें आ गई हैं। अधिकांश विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती भी है, लेकिन हृदयरोग विशेषज्ञ की स्थाई तैनाती नहीं हो पाई है। अस्पताल की भूमि पर अवैध कब्जा कर दर्जनों अवैध निर्माण कर दिए गए हैं। हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी इन अवैध कब्जों को नहीं हटाया गया। अस्पताल प्रशासन की ओर से सुविधाओं के विस्तार के लिए कुमाऊं मंडल के निदेशक स्वास्थ्य कार्यालय का अधिग्रहण कर वहां बच्चों के उपचार के लिए स्पेशल केयर यूनिट बनाने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन अब तक निदेशालय से प्रस्ताव मंजूर नहीं हुआ।

रैमजे अस्पताल का करोड़ों की लागत से जीर्णोद्धार तो किया गया, लेकिन न तो सुविधाएं बढ़ी न चिकित्सकों की तैनाती। स्वास्थ्य विभाग ने रैमजेे में सुविधाएं बढ़ाने की पहल नहीं की, पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन तथा मुख्य चिकित्सा अधिकारी का कार्यालय जरूर एतिहासिक भवन में कर दिया गया। बीडी पाण्डे अस्पताल में सुविधाओं को लेकर पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष दीपक रुवाली तथा रैमजे अस्पताल में सुविधाओं को लेकर हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा, साथ ही दिशा-निर्देश जारी किए। फिलहाल शहरवासियों को सुविधाओं का इंतजार है। चुनाव प्रचार के इस दौर में स्वास्थ्य सुविधाओं का मुद्दा ना तो राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में हैं, न ही वोट बटोरने का माध्यम।

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